सतनाम संप्रदाय के प्रवर्तक श्री समर्थ साहेब जगजीवन दास के परम प्रिय शिष्य व सतनाम सिरमौर के श्री पद से विभूषित समर्थ संत साहेब श्री दूलन दास जी का जन्म संवत 1717 रायबरेली जिला अंतर्गत तहसील महाराजगंज परगना सेमरौता ग्राम मुरैनी के निकट तदीपुर में हुआ था जिसे तबीयतपुर या ताजुद्दीन भी कहते हैं आप के पिता का नाम राय सिंह था जो सोमवंशी क्षत्रिय कुल के उच्च एवं कुलीन परिवार के जमींदार थे निर्गुण पंथी संतों की भांति आपकी भी स्कूली शिक्षा दीक्षा नहीं हुई थी परंतु स्वाध्याय से आपको हिंदी का अति विशिष्ट ज्ञान प्राप्त था आपके साहित्य में भी यह झलक देखने को मिलती है जैसे कि आप के पदों छन्दो व भजनों में रागों का विशेष रूप से उल्लेख है जैसे राग भैरवी राग बसंती जय-जय वंती आदि अत्यधिक रागों का समावेश है आप के दीक्षा गुरु समर्थ साहेब जगजीवन दास जी थे दीक्षा उपरांत आप अधिक समय तक कोटवा धाम में रहकर गुरु सेवा कर साधना रत रहे किंतु कालांतर में गुरु की आज्ञा से तिलोई के निकट मोहनगंज के समीप धर्मे धाम में रहकर आजीवन साधना रत रहे आप बहुत ही उच्च कोटि के नामों पासक संत रहे आपने गुरु के आदेश से अहं भावना का पूरी तरह से त्याग कर दिया था यहां तक कि आप ने आदेश दिया था कि आपके सतलोक लीन होने के पश्चात भी आप की समाधि मंदिर में गुंबद ना बनाया जाए क्योंकि गुंबद भी (ऊंचाई ) अर्थात अहं का ही प्रतीक है तथा गुरु के आदेश के कारण आपने जब एक बार मस्तक नीचे किया तो पूरे जीवन काल में सर भी ऊपर ना उठाया यहां तक की गर्दन की हड्डी भी तीन-चार इंच ऊपर उठ गई थी आपके अनेको शिष्यों में पांच प्रमुख शिष्यों का नाम आता है 1)श्री साहेब सिद्धा दास (2) श्री साहेब तोमर दास (3)श्री साहेब ढ़ाकू दास (4) श्री साहेब घासीदास (5)अल्प दास |आप की महान साहित्यिक रचनाओं में दोहावली, शब्दावली ,भ्रमविनाश, निर्गुण ब्याह विधान, गंगा अष्टक ,महावीर स्तुति आदि आध्यात्मिक और धार्मिक रचनाएं हैं आप पूर्णतया सामाजिक पाखंड के विरुद्ध थे एवं जातिगत भेदभाव से पूर्णतया परे रहे थे|| साधना स्थली पर तप करते हुए 118 वर्ष की आयु में संवत 1835 मे आप सतलोक लीन हुए| आपने आजीवन दींन दुखियों की सेवा की आपकी छत्रछाया मे लूले लंगडे कोढ़ी अंधे सब ठीक हो जाया करते हैं धर्मे धाम से 1 किलोमीटर की दूरी पर कर्म दही नाम का एक सरोवर है ऐसी मान्यता है कि जीवन में एक बार भी स्नान करने से सभी पाप कर्मों का दहन हो जाता है धर्मे धाम के बारे में लोकोक्ति है कि[ जो गया नहीं धर्मे तो का जग के भर्मे ]धर्मे धाम में प्रतिमाह पूर्णिमा को मेला लगता है एवं कार्तिक पूर्णिमा को एक माह का विशेष मेला लगता है जिसमें दूर दूर के श्रद्धालु दर्शन कर लाभान्वित होते हैं मंदिर में विभूति देने की परंपरा है एवं भक्त प्रसाद व फूल माला चद्दर आदि चढ़ाते हैं वर्तमान समय में यह धाम राठौर साहब और भदोरिया जी की देखरेख में संचालित है यह स्थान अब अमेठी जिला में पड़ता है जो तिलोई के नजदीक स्थित मोहनगंज चौराहे से पूर्व दिशा में लगभग 4 किलोमीटर की दूरी पर है समर्थ साहेब दूलन दास की कुछ प्रमुख कीर्तियां और यश गाथाएं जो लोक प्रचलित हैं और सतनामी साहित्य में भी प्राप्त होते हैं ब्लॉग पर शामिल करने का प्रयत्न किया है आशा है सभी सतनामी भक्त लाभान्वित होंगे||
सादर बंदगी
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