एक बार की बात है कि साहेब दूलन दास जी महाराज कोटवा धाम आए हुए थे और साहेब दूलन दास की भक्ति और नाम उपासना की बड़ी ही ख्याति थी समर्थ श्रीसाहेब जगजीवन दास ने कहा दुलारे मुझे आज पियारे दास की बड़ी ही स्मृति हो रही है अतः आप जाकर उन्हें लेकर आते सद्गुरु का आदेश सुनकर साहेब दूलन दास पियारे दास की कुटिया की ओर चल पड़े और दरवाजे पर पहुंचकर बंदगी बजाई तब अंदर से तीन बार सत्यनाम साहिब बंदगी सत्यनाम साहिब बंदगी की ध्वनि सुनाई पड़ी परंतु कोई बाहर नहीं आया समर्थ साहेब दूलन दास ने कुछ देर तक प्रतीक्षा की परंतु अब शायद आवश्यकता से अधिक विलंब हो रहा था अतः मन में विचार करने लगे कि चलकर अंदर देखा जाय साहब पियारे दास किस काम में इतने अधिक तल्लीन है की आवाज सुनकर भी बाहर नहीं आए अतः साहेब दूलन दास कुटिया के अंदर गए पर वहां तो कोई भी नहीं मिला अतः पुनः बाहर आ गए और बाहर बैठकर प्रतीक्षा करने लगे थोड़ी देर में साहब पियारे दास दूर से ही आते हुए दिखाई दिए पास आने पर सतनाम बंदगी हुई तो साहिब दूलन दास ने पूछा जब आप नहीं थे तो कुटिया में बंदगी किसने बजाई इस पर साहेब पियारे दास ने कहा आप ही अंदर चल कर बंदगी बजा कर देख लो साहेब दूलन दास ने अंदर जाकर बंदगी बजाई तो साहिब प्यारे दास की धुनकी रूई धुनने का यंत्र ने पुनः तीन बार सत्यनाम साहिब बंदगी की आवाज दी साहेब दूलन दास के आश्चर्य का ठिकाना ना रहा मुंह से निकल पड़ा यह कैसे संभव है कि जड वस्तु चेतन की भांति व्यवहार करें साहेब पियारे दास ने कहा मेरे साईं सतगुरु धन्य हैं मेरी नाम उपासना खंडित ना हो इसलिए मेरी धुनकी में बैठकर मेरे लिए नाम जप करते ही रहते हैं और भाव विह्वल हो उठे तब समर्थ साहेब दूलन दास ने उन्हें समर्थ साईं का आदेश कह सुनाया और दोनों ने कोटवा धाम पहुंचकर सद्गुरु की चरण वंदना की समर्थ साईं ने अपने प्रिय शिष्यों को अपने हृदय से लगा लिया अब साईं दूलन दास को यह ज्ञान मिल चुका था कि यदि प्रेम भक्ति और नाम उपासना सच्ची हो तो जड़ वस्तुएं भी चेतन वत व्यवहार करती हैं कहते हैं समर्थ साहब पियारे दास की धुनकी सदैव ही राम नाम का जप किया करती थी और उसमें से राम-राम की ध्वनि सुनाई पड़ती थी
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