महान नामों पासक समर्थ साहब पियारे दास मुसलमान धुनिया थे एक बार सतनाम चर्चा एवं संत सम्मेलन के अवसर पर जरौली में भंडारे का आयोजन किया गया पुराने समय में भंडारे के रूप स्वरूप थोड़ा भिन्न होते थे यदि ब्राह्मण लोग किसी के यहां उस भंडारे के आयोजन कर्ता या उसके परिवार के हाथ का बना भोजन खाने में अक्षम होते थे तो वह लकड़ी हांडी और राशन आदि लेकर अपने अपने हिस्से का भोजन स्वयं पका कर खाते थे अक्सर ऐसा छुआछूत अथवा जातिगत भेदभाव के कारण ही होता था अतः समर्थ साहब पियारे दास के भंडारे में भी ब्राह्मणों ने भोजन करने से मना कर दिया और भंडारे के निमंत्रण को सार्थक करने के लिए स्वयं की हांडी लकड़ी और राशन आदि की मांग की और बोले हम स्वयं ही पका कर खा लेंगे अतः सभी ब्राह्मणों को उनके हिस्से की राशन हांडी और लकड़ी आदि दे दी गई पर शायद अग्निदेव आज क्रोधित हो चले थे आज जो भी ब्राह्मण अग्नि पर हांडी चढ़ाता था उसकी हांडी चूल्हे पर ही विस्फोट हो जाती थी एक एक कर सैकड़ों हांडी का विस्फोट हो चुका था अतः ब्राह्मणों ने इसे ईश्वरीय लीला और ईश्वर का आदेश समझ कर और अपनी भूल समझकर सभी ने साहब पियारे दास से क्षमा याचना की और उनकी शरण में आकर भंडारे का प्रसाद ग्रहण किया कर तृप्त हुए तथा जय जयकार करते हुए अपने घर विदा हुए
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