पाती दूलन दास की पढ़ै सुनै जो कोय |
व्यथा विरह व्यापै नहीं हिरदय दर्शन होय ||
शुरुआती दौर में साहेब दूलन दास समर्थ साहेब जगजीवन दास के साथ ही रहा करते थे किंतु स्वामी जी के समझाने बुझाने पर धर्मे धाम में ही रहकर ध्यान सुमिरन करने लगे एक समय की बात है कि काफी दिन बीत गए समर्थ साहिब दूलन दास कोटवा धाम नहीं गए साहेब के दरबार में एक भक्त ने पूँछ लिया कि साहेब बहुत दिन बीत गए साहेब दूलन दास नहीं दिखाई दिए भक्त की बात सुनकर साहब जगजीवन दास ने एक पत्र लिखा और भक्त से कहा इसे लेकर तुरंत धर्मे धाम जाओ पत्र लेकर भक्त साहिब दूलन दास के पास पहुंचा|| साहेब दूलन दास भक्त को देखकर बड़े प्रसन्न हुए और उसकी बड़ी आव भगत की और पत्र पढ़ने लगे जिसमें लिखा था कि
""दूलन पाती ना लिख्यो गए बहुत दिन बीत"
हम तो जानी भगत हो मुंह देखे की प्रीत ""
साहिब दूलन दास ने पत्र को बारंबार प्रणाम किया अपने हृदय से लगाया और रोते हुए यह उत्तर लिखा
"दूलन पाती वै लिखैं जिनके पिय परदेस "
तनमा मनमा नयनमा तिनका कौन संदेश"
भक्त जब पुनः समर्थ साहेब जगजीवन दास के दरबार में पहुंचा तो उत्तर की पाती पढ़ी गई और साहब दूलन दास का गुरु के प्रति अटूट प्रेम जानकर सभी बहुत प्रसन्न हुए समर्थ साहेब की इच्छा जानकर साहेब दूलन दास कोटवा धाम दर्शनार्थ पहुंचे और चरण
बंदगी की भक्तों ने जयकारा लगाया |
|| शुभ सतनाम बंदगी ||
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