भारतवर्ष में उड़ीसा के पुरी के जगन्नाथ धाम की महिमा अति विशिष्ट है सभी सनातन धर्मी विशेष माह में चारों धाम की यात्रा पर निकलते हैं ऐसे ही समय में जब समर्थ साहिब दूलन दास को पता चला कि लोग पुरी के दर्शनों के लिए जा रहे हैं तो आपका भी मन मचल उठा आपको भगवान जगन्नाथ के प्रति विशेष ही आस्था और लगाव था अतः आप समर्थ स्वामी जगजीवन दास के दरबार में पहुंचे और पुरी के जगन्नाथ स्वामी के दर्शन की अनुमति मांगी इस पर समर्थ स्वामी ने हंसकर कहा कि कहां जाओगे बहुत दूर है महीनों की पैदल यात्रा रास्ते में ठगों चोरों डाकुओं का भय ना खाने पीने की उचित व्यवस्था जो कुछ भी वहां चढ़ाना चाहते हो वह सब मुझको ही दे दो यह कहकर समर्थ स्वामी मुस्कुराने लगे साहेब दूलन दास ने समझा कि स्वामीजी हास्य विनोद कर रहे हैं अतः पुनः हाथ जोड़कर अनुमति मांगी इस बार समर्थ स्वामी ने उन्हें अनुमति दे दी भक्ति और प्रेम में मगन दूलन दास पुरी धाम पहुंचे और फूल माला दुशाला और खड़ाऊँ भगवान जगन्नाथ को भेंट किया और महीनों बाद घर वापस आए| परन्तु सदगुरू स्वामी के दर्शन ना होने से उत्सुकता और व्याकुलता बड़ी हुई थी और भगवान जगन्नाथ का प्रसाद भी तो देना था स्वामी जी को अतः अगले दिन चल पड़े साहब के दरबार को |समर्थ साहेब जगजीवन दास दरबार में भक्तों के बीच बैठे हुए थे| साहेब दूलन दास ने दरबार में प्रवेश किया पर यह क्या! आज स्वामी जी की वेशभूषा अलग थी यह राज बस समर्थ साहिब दूलन दास ही जानते थे वहीं दुशाला वहीं खड़ाऊँ फूल माला जो पुरी के जगन्नाथ में चढ़ा आए थे समर्थ स्वामी धारण किए हुए बैठे थे| समर्थ स्वामी ने मुस्कुराते हुए कहा" यात्रा कैसी रही दुलारे" अब साहिब दूलन दास के आश्चर्य का ठिकाना ना रहा| सब कुछ समझते देर ना लगी रोते हुए कदमों से लिपट गए हे प्रभु क्षमा करो मैं कहां कहां नहीं भटका आपको पाने लिए! समर्थ स्वामी ने उठाकर हृदय से लगा लिया और कहा "
दुलन दूर न जाइए ,सदा रहो गुरू पास |
जो कुछ मांगो सो मिलै , देय जगजीवन दास""
कहते हैं कि समर्थ साहेब दूलन दास ने उसी दिन से प्रतिज्ञा कर यह गांठ बांध ली कि अब वह किसी भी तीर्थ यात्रा पर ना जाएंगे और फिर आजीवन किसी भी तीर्थ यात्रा पर नहीं गए|
शुभ सतनाम बंदगी
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