हथौंधा स्टेट के महाराज जरौली पधारे थे गांव के मुखिया जमींदार जी महाराज की सेवा में लगे हुए थे माघ का महीना था शीतलहर और ठंड कुछ ज्यादा ही थी महाराज को कैसे प्रसन्न किया जाए क्या उपहार दिया जाए सभी अपनी अपनी ओर से प्रयासरत थे एक जमींदार साहब ने सोचा क्यों ना राजा साहब को रजाई भेंट की जाए अतः जमींदार साहब पियारे दास साहब के पास पहुंचे और बोले पियारे दास जी यह रजाई आज ही बन कर तैयार हो जानी चाहिए राजा साहब को भेंट करना है ध्यान रहे कोई लापरवाही और कोई गलती नहीं होनी चाहिए और रूई भरने मे भी कंजूसी मत करना ताकि गर्मी बनी रहे समर्थ साहब पियारे दास ने कहा ठीक है और उन्हें शाम तक रजाई बना कर दे दी कहते हैं उस रजाई में भी सत्य नाम की धुन आने लगी और गर्मी इतनी ज्यादा बढ़ जाती थी कि रजाई हटा देना पड़ता था जिसके परिणाम स्वरूप राजा साहब ने वह रजाई लपेट कर रख दी और जमींदार साहब को तलब किया तथा सारा हाल जानकर ससम्मान प्रसाद समझकर रजाई ऊँची जगह पर रखवा दी
No comments:
Post a Comment