समर्थ साहब पियारे दास का परिवार बहुत ही विस्तृत था परिवार में 100 से भी अधिक सदस्य थे और जब से समर्थ साहब पियारे दास मंत्र दीक्षा लेकर आए थे तब से सभी उनको भांति भांति के व्यंग आदि बातों से प्रताड़ित करते रहते थे समर्थ साहब पियारे दास की कुटिया पर भी हड्डी मांस पंख आदि फेंके जाते थे पर समर्थ साहब पियारे दास संतोष पूर्वक सिर्फ नाम उपासना में ही लगे रहते थे ऐसा करते करते कई वर्ष बीत गए पर अपने ही घर परिवार के लोग सुधरने का नाम नहीं ले रहे थे जिस अनुपात में समय व्यतीत हो रहा था उसी अनुपात में उनकी प्रताड़ना भी बड़ी होती जा रही थी और वह सदैव इसी कोशिश में रहते कि किस तरह से आपको ज्यादा से ज्यादा तकलीफ दी जाए एक दिन जरौली में समर्थ साहेब जगजीवन दास आपसे मिलने आए तब समर्थ साहब पियारे दास ने दर्शन आरती और बंदगी कर चरणोंदक लेकर समर्थ साहब जगजीवन दास से विमुख यानी दूसरी और मुंह कर सिर नीचे करके बैठ गए तब समर्थ साईं जगजीवन दास ने पूछा कि ""क्या हुआ पियारे दास मेरी तरफ देखो"" समर्थ श्री सद्गुरु जगजीवन दास की प्रेम मई वाणी सुनकर जब पियारे दास ने समर्थ साईं जगजीवन दास की तरफ देखा तो समर्थ साहब पियारे दास का पूरा चेहरा वस्त्र आदि सब आंसुओं में भीग चुका था समर्थ साहेब जगजीवन दास ने पूछा कि ""क्या हुआ तुम इतने दुखी क्यों हो"" साहेब प्यारे दास ने हाथ जोड़ते हुए कहा अब और सहन शक्ति नहीं है प्रभु अब अधिक बर्दाश्त नहीं होता हे मेरे साईं अब आप ही मेरी रक्षा करो समर्थ श्री जगजीवन दास ने कहा प्यारे दास तुम सतनाम से विमुख ना होना शेष तुम जिस से भी विमुख हो गए या जिधर से भी तुम्हारी कृपा दृष्टि हट जाएगी सब स्वत: ही नष्ट हो जाएंगे इसलिए समस्त संसार पर सिर्फ कृपा दृष्टि ही रखो कहकर समर्थ साईं जगजीवन दास कोटवा धाम चले आए पर संभवत पियारे दास ने अब अपने ही परिवार के ऊपर से अपनी कृपा दृष्टि हटा ली और डेढ़ 2 वर्षों में ही पूरा परिवार एक एक कर महामारी की चपेट में समाप्त हो गया
No comments:
Post a Comment