एक बार समर्थ साहेब पियारे दास प्रातः काल बगीचे में अपनी कुटिया के सामने ही टहल रहे थे तथा कुछ भक्त जो कोटवा धाम से पधारे थे उनसे सतनाम चर्चा हो रही थी समर्थ साहेब पियारेदास कोटवा धाम की चर्चा सुनकर अति प्रसन्न हो जाते थे अतः सतनाम चर्चा में तल्लीन समर्थ साहब पियारे दास को होश ना रहा दातुन घिसते-घिसते अब दो-तीन अंगुल ही बची थी अतः अब उसे फाडकर जीभ साफ नहीं की जा सकती थी इस पर भक्तों ने हंसते हुए कहा साहब दातुन तो समाप्त हो गई इस पर समर्थ साहब प्यारे दास ने कहा सतनाम भक्ति करने वाला नष्ट नहीं हो सकता और वह दातुन वही जमीन पर गाड़ दी ऐसी मान्यता है कि वह दातून एक बड़े वृक्ष के रूप में परिणित हो गया और आज भी जरौली में विद्यमान है
No comments:
Post a Comment