समर्थ साहेब दूलन दास को स्वामी जी की सेवा करते कई महीने बीत चुके थे घर परिवार के प्रति पूरी तरह उदासीन हो चुके थे| सांसारिक जीवन से लगाव मोह आदि ना झलकता था| घर का स्मरण भी ना करते थे और स्वामी जी की सेवा ही अपना सर्वस्व समझते थे |एक बार स्वामी जी ने बुलाकर कहा" दुलारे घर जाओ" उसी क्षण आज्ञा मानकर साहेब दूलन दास घर चले आए पर यहां उनका मन नहीं लग रहा था |इसलिए समर्थ स्वामी के पास वापस चले आए और निवेदन किया कि स्वामी जी आपके चरणों की सेवा के बिना मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लगता अतः मुझे सदा ही अपने चरणों की सेवा में रहने दीजिए अलग ना कीजिए| इस बात पर स्वामी जी ने उन्हें बहुत समझाया बुझाया और कहा " दुलारे तुम जहां जहां होते हो मैं वही वही होता हूं और मैं जहां जहां होता हूं तुम भी वही वही होते हो मेरा और तुम्हारा कोई अंतर कोई भेद नहीं होता मुझ में और तुममे कोई दूरी नहीं होती इसलिए मेरी बात मानो और जाकर अपने घर पर निवास करो "" और वही पर ध्यान सुमिरन और दीन सेवा किया करो कहते हैं इसके बाद साहिब दूलन दास घर में आकर रहने लगे और यहीं रहकर ध्यान सुमिरन नाम जप असहाय अपाहिज और दीनों की सेवा गुरु के आदेशानुसार करने लगे| धर्मे धाम में सैकड़ों रोगी आते और साहेब के हाथ की विभूति और जल ग्रहण कर ठीक होकर जय जयकार करते हुए वापस जाते |
"सत्यनाम की फौज में, दूलन है सिरमौर |
अंधे लूले लंगड़े कोढ़ी ,सबका दीन्ही ठौर||
सभी मरीजों की एक ही औषधि थी विभूति और जल सब इसी एक ही औषध से ठीक हो जाते थे समर्थ साहिब दूलन दास ध्यान सुमिरन और दीनो और असहायो की सेवा में ऐसे लगे कि 16 वर्षों तक कोटवा धाम नहीं गए एक दिन कुछ भक्तों ने स्वामी जी से चर्चा की कि काफी दिनों से साहब दूलन दास आपकी सेवा में नहीं आए समर्थ स्वामी जी ने कहा ""दुलारे तो कभी मुझसे दूर ही नहीं होते वह तो सदैव ही मेरे पास रहते हैं यदि स्नेह प्रेम श्रद्धा विश्वास सत्य है तो दूरी कहां रहती है ""यह बात समाधि में बैठे दूलन दास जान गए और तत्क्षण सभा में उपस्थित होकर स्वामी जी की चरण वंदना करने लगे स्वामी जी ने उन्हें उठाकर अपने हृदय से लगा लिया और उन्हें अपना स्वरूप देकर अपने पास बैठा लिया उपस्थित जनसमूह को एक ही रूप के स्वामी समर्थ जग जीवन दास जी के 2--2 रूप दिखाई पड़ने लगे तब जाकर सभी भक्तों को यह ज्ञात हुआ साहेब दूलन दास पर समर्थ स्वामी जी का अपार स्नेह है और यह भी ज्ञात हुआ कि समर्थ साहिब दूलन दास जी परम सिद्ध महात्मा हैं और सभी जय जयकार करने लगे||
शुभ सतनाम बंदगी
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