पंडित राम दीनदास आज बड़े प्रसन्न लग रहे थे हल्दी की पैदावार बहुत अच्छी हुई थी श्रीमती जी को देखकर बोले इस बार बहुत मुनाफा होगा यह सब समर्थ स्वामी की कृपा से होगा यह सोच कर श्रीमती जी से बोले थोड़ी हल्दी स्वामी जी के लिए भी ले जाऊंगा अगले दिन पंडित रामदीनदास हल्दी की पोटली लेकर स्वामी जी के पास पहुंचे पर स्वामी जी तो कुछ संचित नहीं करते थे जो कुछ भी आता था सब भंडारे में इस्तेमाल हो जाता था पर आज होनी को कुछ और ही मंजूर था हल्दी को यशस्वी होना था स्वामी जी ने दरबार में उपस्थित सभी संतो को हल्दी की एक-एक गांठ थमा दी और बोले मेरा भक्त लाया है आप लोग भी स्वीकार करें सभी ने हल्दी को प्रसाद जैसा समझ कर हथेली में रखकर मुट्ठी में बांध कर रख लिया पर दूलन दास हल्दी लेकर गुरु माता के पास पहुंच गए और बोले माता माता स्वामी जी ने हल्दी की गांठ दी है इसका क्या करूं गुरु माता ने ध्यान से देखा तो एक गांठ हल्दी सोचने लगी यह मसाले के लिए तो नहीं दिया होगा अवश्य ही स्वामी जी ने पूजा पाठ के लिए, या तो किसी के स्वागत में टीका आदि के लिए दिया होगा अतः दूलन दास से बोली कि ""घिस डालो घिस कर ले जाओ"" समर्थ साहेब दूलन दास हल्दी की गांठ घिसने लगे हल्दी की गांठ घिस जाने पर चंदन जैसा हो जाने पर कटोरी में डाल कर स्वामी जी के सामने पहुंचे और बोले स्वामी जी हल्दी लीजिए पर सभा में उपस्थित सभी लोग दूलन दास को देख कर हंसने लगे क्योंकि साहेब दूलन दास के ना सिर्फ हाथ पीले हो गए थे बल्कि वस्त्रों पर भी हल्दी के रंग लग गए थे और हल्दी की सुगंध आ रही थी तब स्वामी जी ने साहिब दूलन दास को देखकर यह दोहा पढ़ा
"" सत्यनाम हरदी गिरा, रगरे से सिरसाय
जगजीवन रगरे बिना, ज्यों के त्यों रहि जाय ""
अर्थात राम नाम का जप भी इसी हल्दी की गांठ के जैसा ही है जो जितना अधिक जप किया जाए अर्थात भजा जाए तो वह अपना रंग और सुगंध वैसे ही छोड़ता है जैसे कि यह हल्दी ,किंतु बिना रगड़ के गांठों के जैसा ही रह जाता है इसलिए हमेशा ही नाम जप करते रहना चाहिए इस तरह स्वामी जी अपने भक्तों के द्वारा दिए गए उपहारों को भी अमूल्य वह अविस्मरणीय बना देते थे औरसभी ईश्वरीय संदेश पाकर प्रसन्न हो जै कार करने लगे ||शुभ सतनाम बंदगी
No comments:
Post a Comment