पढ़िए दूलन दास की अलौकिक भक्ति कथा जिसने उन्हें उस परम पद पर पहुंचा दिया जिसके लिए लोग वर्षो कठोर तपस्या करते हैं
समर्थ साहेब दूलन दास समर्थ स्वामी के अनन्य भक्त थे और जब भी मन होता था बस दर्शनों के लिए निकल पड़ते थे ना अवस्था बोध कि किस हाल में हैं क्या पहने हैं क्या नहीं |ना मौसम बोध गर्मी सर्दी बारिश आदि किसी का ख्याल ना रहता था बस जैसे हैं निकल पड़ते| इधर पिछले कुछ दिनों से समर्थ स्वामी के पैरों में अचानक छाले पड़ जाते घुटने छिल जाते कभी-कभी पैरों से खून तक बहने लगता समर्थ स्वामी पसीने पसीने हो जाते कभी कभी मुंह से आह निकल जाती पर भक्तों के पूछने पर वह कुछ ना बोलते भक्त उनकी सेवा में लग जाते कोई गर्म पानी से पैर धोता कोई तेल गर्म करके लगाता था गुरु माता भी कुछ समझ ना पाती एक दिन समर्थ स्वामी भक्तों के बीच बैठे थे अचानक मुंह से ""दुलारे"" शब्द निकल गया और चेहरे की भाव भंगिमा ऐसे लग रही थी जैसे कि अचानक पीड़ा हुई हो ठोकर लगी हो पैरों के अंगूठे से खून रिसने लगा इस बार भी सभी भक्तों ने स्वामी जी की बहुत सेवा की और कारण पूछा तो समर्थ स्वामी ने कहा ""दुलारे दास आ रहे हैं पर उसे कुछ ना बताना"" सभी भक्त और गुरु माता यह समझ चुके थे कि जब दूलन दास चलते हैं तो सद - गुरु के ध्यान में प्रेम मगन आंख मूंद कर चलते हैं फिर चाहे कांटा लगे या ठोकर लगे कोई परवाह नहीं पर दूलन दास के सारे कष्ट समर्थ स्वामी स्वयं पर ले लेते हैं भक्तों ने हाथ जोड़कर गुरु माता से सारी बात बताई और यह भी कहा कि समर्थ स्वामी ने साहेब दूलन दास को कुछ भी ना बताने के लिए कहा है सभी ने सोच-समझकर माता से अनुरोध किया वही कुछ सहायता कर सकती हैं जब समर्थ साहेब दूलन दास पहुंचे तो गुरु माता ने उन्हें 1 जोड़ी जूते देते हुए कहा दुलारे इसे पहन कर आया करो समर्थ साहेब दूलन दास आज तो परम आनंद में डूब गए चेहरे का भाव ही ऐसा लग रहा था जैसे किसी गरीब को करोड़ों की दौलत मिलने से होती है दूलन दास चरण बंदगी कर सभी भक्तों से मिले और घर वापस आ गए भक्त लोग भी खुश हो गए की समस्या का सरल और सहज ही उपाय मिल गया पर कुछ दिनों बाद वापस समर्थ स्वामी के पैरों में छाले पड़ने लगे खून रिसने लगा जैसे कांटे चुभ गए हो भक्तों की चिंता बढ़ गई सब हाथ जोड़े गुरु माता के पास गए और घटना बताई और समर्थ स्वामी की सेवा करने लगे आज गुरु माता थोड़ा क्रोध में थी ""आने दो दुलारे दास को आज खबर लूंगी जब जूता दे दिया तो भी पहन कर नहीं आते आज फटकार लगाऊंगी"" जब समर्थ साहेब दूलन दास पहुंचे स्वामी की चरण वंदना की और लेट कर गुरु माता को भी प्रणाम किया तो माता ने पूछा दुलारे तुम जूता पहन कर क्यों नहीं आए मैंने कहा था ना जूता पहन कर आना साहेब दूलन दास ने कहा माता मैं आपकी आज्ञा का उल्लंघन कैसे कर सकता हूं आप तो मेरे लिए सदैव ही पूज्यनीय हो गुरु माता ने कहा फिर तुम जूता पहन कर क्यों नहीं आए समर्थ साहेब दूलन दास ने पगड़ी उतार कर दिखाते हुए कहा माता यह पहना है मैंने गुरु माता शब्द सुनकर ही अवाक रह गई इतना प्रेम इतनी श्रद्धा ऐसी भक्ति फिर क्यों ना स्वामी अपने भक्तों के लिए कष्ट उठाएं गुरु माता बोली दूलन तुम सदा ही यशस्वी रहोगे तुम्हारी भक्ति की समता कोई ना कर सकेगा तुम वह भी देने में समर्थ रहोगे जो विधि के विधान में भी ना हो
""अति सनेह बस माता, दूलन कहं वर दीन्ह
अष्ट सिद्धि नव निधि का तुम्हारी चेरिया कीन्ह ""
शुभ सतनाम बन्दगी
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