卍 ॐ दूलन नमो नमः श्री दुलारे नमो नमः | साहेब दूलन नमो नमः जगजीवन प्यारे नमो नमः|| 卍

Wednesday, March 20, 2019

कीर्ति गाथा 12

          समर्थ साहेब दूलन दास  विदेह थे कहते हैं आपके शरीर पर अग्नि वायु जल भयंकर विष आदि का कोई भी प्रभाव ना होता था और आपका मन भी विकारों से रहित था कीरत सागर में वर्णित एक कथा आती है कि एक बार समर्थ साहिब दूलन दास कर्मदहन सागर की ओर स्नान हेतु जा रहे थे मार्ग में एक ब्राह्मण स्त्री समर्थ साहब जगजीवन दास के गुण शील और स्वभाव का वर्णन करते हुए एक भजन गा रही थी उस ब्राह्मण स्त्री के मुख से समर्थ साईं जगजीवन साहब के गुण वाले भजन सुनकर साहब दूलन दास  अत्यंत ही प्रसन्न हो गए और आनंद बस अश्रुपूरित होकर उस ब्राह्मण स्त्री के चरण पकड़ लिये  और बोले तुम धन्य हो जिसने समर्थ साईं जगजीवन दास की महिमा को जान लिया पास ही खड़े कई लोग यह दृश्य देख रहे थे जिनमें से एक व्यक्ति ने कहा धन्य है दूलन की भक्ति जो अपने गुरु का नाम सुनकर ही पुलकित हो जाते हैं किंतु दूसरे व्यक्ति ने कहा "अरे नहीं वह  तो उस ब्राह्मण स्त्री के रूप और यौवन पर मुक्ध हो गए इसलिए चरण पकड़ लिया समर्थ साहिब दूलन दास अपने मुख के सामने ही यह सब बातें सुन रहे थे पास ही एक ठठेरा तांबा सीसा आदि गला रहा था समर्थ साहिब दूलन दास ने उठाकर पिघला हुआ कांच पी लिया यह दृश्य देखकर निंदा करने वाले और सभी लोग घबरा गए परंतु समर्थ साहिब दोलन दास जी विना कुछ हुए  वही खड़े रहे और बोले मेरी देह पर ऐसी किसी वस्तु का कोई प्रभाव नहीं ना ही मेरे मन पर किसी विकार आदि का प्रभाव है मैंने यह शीशा मात्र प्रदर्शन के लिए नहीं पिया किंतु मुझसे संप्रदाय का अपमान बर्दाश्त ना हुआ अत: आपको बताने के लिए किया कि सतनामी  संतों के ऊपर ऐसी किसी वस्तुओं का प्रभाव नहीं रहता आपने अपनी सद्बुद्धि से जिस तरह मेरा आकलन करना था किया मुझे ऐसी निंदा या स्तुति से कोई प्रभाव नहीं पड़ता यह देखकर सभी समर्थ साहिब दूलन दास से क्षमा याचना करने लगे

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