समर्थ साहेब जगजीवन दास का एक कुर्मी भक्त था उसे इकलौता पुत्र था और उसे अपने पुत्र से कुछ ज्यादा ही प्रेम था पर ईश्वरीय गति को कौन जाने एक दिन उसका का पुत्र ईश्वर को प्यारा हो गया रोते बिलखते अपने पुत्र का शव लेकर समर्थ श्री जगजीवन दास के दरबार पहुंचा समर्थ साईं जगजीवन दास के पांच पुत्रों में से स्वयं के चार पुत्र सतलोक लीन हो चुके थे और समर्थ साहेब जगजीवन दास प्रत्यक्ष चमत्कारों के प्रबल विरोधी थे और अपने शिष्यों से भी कहते थे कि तपोबल और सिद्धियां प्रदर्शन का विषय वस्तु नहीं है यह दीनों, असहायों और लोक कल्याण के हेतु ही प्रयुक्त करना चाहिए उसने ने एक भक्त की घटना देख रखी थी एक बार एक टीडीदासनाम के भक्त के इकलौते पुत्र का निधन होने पर वह आकर अत्यधिक करुण विलाप करने लगा समर्थ साईं से उसकी करुण दशा देखी ना गई तो उससे कहा जाओ उसके सामने सत्यनाम का जप करो सत्यनाम सुमिरन ना छोड़ो यदि उसकी आयु शेष होगी तो वह जीवित हो जाएगा और उस भक्त के द्वारा सतनाम का सुमिरन करते ही वह जीवित हो गया था इसी आशा विश्वास और श्रद्धा में आज ये समर्थ साईं के चरणों पर शीश रख कर लेटे हुए थे समर्थ साईं जगजीवन दास ने बहुत उपदेशों से समझाने का प्रयास किया किंतु सब विफल रहा अंतत: समर्थ साईं जगजीवन दास ने साहिब दूलन दास को इशारा किया और साहब दूलन दास ने कुर्मी के पुत्र को पैरों से स्पर्श करते हुए कहा "कितना सोते हो तुम्हारे पिता कितने परेशान हैं "और कोई हरकत ना होते देख साहब दूलन दास ने पैर से एक ठोकर मार दी और बोले "इतना भी कोई सोता है क्या जल्दी उठऔर घर जा" कुर्मी का पुत्र जी उठा और पिता पुत्र जयकारा लगाते हुए घर आए
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