समर्थ साहेब जगजीवन दास जी की साहेब दूलन दास पर विशेष कृपा थी साहेब दूलन दास की भक्ति नाम सुमिरन सेवा भाव व विनम्रता आदि से साईं जगजीवन दास बहुत प्रसन्न रहते थे एक दिन साईं जगजीवन दास ने साहिब दूलन दास को बुलाकर कहा दुलारे कुशभर गांव में साहिब मंसा दास जी रहते हैं आप उनका सदा ही ख्याल रखना और उन्हें संभालते रहना अगर कोई गलती भी हो जाए तो सहायता करना साहेब दूलन दास ने जो आज्ञा स्वामी कहकर आदेश शिरोधार्य कर लिया इस घटना के कुछ समय पश्चात ही समर्थ साहेब जगजीवन दास परमधाम सतलोक लीन हुए और उसके कुछ दिनों पश्चात एक असहाय निराश्रित निर्धन ब्राह्मणी साहेब मंसा दास की कुटी के समीप ही झोपड़ी बनाकर रहने लगी इस बात की शिकायत गांव के लोगों ने साहिब जलाली दास (पुत्र साहिब श्री जगजीवन दास जी) से की कि साहिब मनसा दास जी के उस स्त्री से अनैतिक संबंध हैं इसलिए उन्हें इस संप्रदाय से निकाला जाए यह सुनकर समर्थ साहिब जलाली दास ने यह आदेश दिया कि आज से कोई भी साहेब मंसा दास को सतनामी ना बुलाएगा और ना ही उनके यहां जाएगा क्योंकि उन्होंने सतनाम पंथ के विरुद्ध कार्य किया है यह बात जब साहिब मन्सा दास ने सुना तो बहुत दुखी हुए तत्कालिक सामाजिक रीतियों के अनुरूप साहिब मंसा दास ने विचार किया कि भंडारा करना चाहिए जिससे इस प्रकार के दोषों का प्रायश्चित हो सके यह सोचकर उन्होंने साधु संतों और ब्राह्मणों को निमंत्रण भेजा पर किसी ने भी निमंत्रण स्वीकार नहीं किया सभी ने साहिब मंसा दास जी के यहां जाने से मना कर दिया असहाय और दुखी होकर मंसा दास साहेब दूलन दास के पास पहुंचे और उन्हें पूरा वृतांत कह सुनाया जिसे सुनकर साहिब दूलन दास को स्वामी जी की कही हुई बात का पूरा स्मरण हो आया साहेब दूलन दास ने निश्चित समय पर भंडारे में आने का आश्वासन दिया और उन्हें विदा कर दिया और निश्चित समय पर बहुत से साधु संतों को लेकर भंडारे हेतु पहुंच गए तत्पश्चात साहिब दूलन दास ने एक भक्त को बुलाकर कहा कि वह शीघ्र ही जाकर साहेब जलाली दास से प्रार्थना करें कि बहुत से सतनामी साधु संत आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं आप शीघ्र चलिए यदि आप नहीं आएंगे तो आज समर्थ साहेब जगजीवन सरकार को ही भक्तों की लाज बचाने के लिए आना पड़ेगा यह साहिब दूलन दास की प्रतिज्ञा है यह सुनकर भक्त चल पड़ा इधर साहिब जलाली दास को समर्थ साहेब जगजीवन दास ने स्वप्न में दर्शन देकर कहा कि दुलारे (दूलन दास )साहेब मंसा दास के यहां साधु संतों के साथ पधारे हैं और तुम सो रहे हो उनका भक्त यहां आ रहा है जल्दी उठो अन्यथा बात नहीं बनेगी भक्त के यहां पहुंचने की प्रतीक्षा किए बिना तुम शीघ्र ही मंसा दास जी के यहां पहुंच जाओ आदेश देकर साहेब जगजीवन दास जी अंतर्ध्यान हो गए समर्थ साहिब जलाली दास आश्चर्य से उठ बैठे और अविलंब मंसा दास की कुटिया की ओर चल पड़े साहेब जलाली दास को देखते ही साधु संतों व भक्तों में प्रसन्नता की लहर दौड़ गई सबने साहेब के नाम का जयकारा लगाया और भरी सभा में साहिब दूलन दास ने वर्षों पूर्व दिए गए समर्थ स्वामी जगजीवन दास के आदेश का व्याख्यान सभी के सम्मुख रखा इस तरह प्रसन्नता पूर्वक साहेब मंसा दास का भंडारा संपन्न हुआ और साहेब दूलन दास की कृपा से उन्हें कलंक से मुक्ति मिली
सादर बंदगी
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