समर्थ साहिब दूलन दास के शिष्यों में साहेब ढ़ाकूदास का नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है साहेब ढ़ाकूदासदास जाति से कुम्हार थे एवं घड़े आदि मिट्टी के बर्तन बनाते थे आप चलते-फिरते उठते बैठते सदा ही नाम उपासना में लीन रहते थे तथा लोगों को भी यही कहते थे कि "राम नाम रटे जाए आपन काम केहे जाए का काहू को डर है "एक बार की बात है कि अमेठी के महाराज शिकार खेलने जायस की सीमा पर जंगलों में आए साथ में कुछ सैनिक और सेवादार भी थे राजा साहब ने सैनिकों से कहा जाओ जाकर बर्तन हांडी आदि का प्रबंध करो सैनिक कुम्हार का पता पूछते पूछते साहेब ढ़ाकूदास के पास पहुंचे और बोले बाबाजी हंडिया बर्तन आदि सब लेकर जल्दी पहुंचो राजा साहब अमेठी से पधारे हैं तब साहेब ढ़ाकूदास ने कहा भाई हंडिया बर्तन जितने चाहो उतने ले जाओ पर अब मैं बूढ़ा हो गया हूं मुझ से भार नहीं उठाया जाता पर हठी और जिद्दी सैनिकों को बूढ़े कुम्हार पर तरस नहीं आया और वह धमकाने लगे मरता क्या ना करता साहेब ढ़ाकूदास ने खैंची (बांस की बनी बड़ी टोकरी )में सारे बर्तन रखे और सिर पर उठाए चलने लगे सैनिक आगे आगे साहेब ढ़ाकूदास पीछे पीछे जब सैनिक राजा साहब के पास पहुंचे तब राजा साहब ने पूछा बर्तन ले आए इस पर सैनिकों ने ढ़ाकूदास की तरफ इशारा करते हुए कहा कुम्हार लेकर आ ही रहा है महाराज, अब महाराज और सभी कुम्हार (साहेब ढ़ाकूदास) की तरफ देखने लगे बड़ा ही आश्चर्यजनक और अद्भुत नजारा था साहेब ढ़ाकूदास कमर झुकाए कंधे पर लट्ठ रखे हुए चल रहे थे पर खैंची उनके सिर से 2--3 हाथ ऊपर ऊपर चल रही थी समीप आते ही खैंची जमीन पर आ गई साहेब ढ़ाकूदास ने हाथ जोड़ते हुए कहा आपकी सेवा में हाजिर हूं महाराज पर राजा साहब सैनिकों की करतूत से बहुत लज्जित हो चुके थे और क्षमा मांगी तथा माफीनामे में गांव और जमीन देने का आग्रह करने लगे परंतु ढ़ाकूदास ने पारिश्रमिक के अतिरिक्त कुछ भी ना लिया साहेब ढ़ाकूदास की समाधि आज भी जायज कस्बे में है लोगों में आज भी इस महा नामोंपासक के लिए श्रद्धा है धन्य है ऐसे सतनामी और त्यागी संत|
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