सतनाम पंथ के सिरमौर सरदार दूलन दास जी के शिष्य तोमर दास जी हुए जो बड़े ही सिद्ध महात्मा थे। तोमर दास जी के शिष्य गंगादास ने नागपुर में पहुंचकर एक बस्ती के किनारे अपनी कुटी बनाई और एक कुआं भी खुदवाया। जिसका जल बड़ा मीठा और स्वादिष्ट था। जबकि शहर में जितने भी हुए थे उनमें खारा पानी था। यह कौतुक देखकर शहर के लोगों ने जाकर राजा से कहा कि महाराज एक फकीर ने यहां आकर अपनी कुटी बनाई और कुआं खुदवाया जिसका जल बहुत मीठा है। परंतु उसने बिना आपकी आज्ञा के आप के राज में कुटी बनाई और कुआं खुदवाया। यह सुनकर राजा ने आदेश दिया कि इसी समय उस फकीर को उस जगह से निकाल दो और वह कुआं जप्त कर राजभवन की जल आपूर्ति हेतु उपयोग में लाया जाए। दरबारियों ने जब यह आदेश गंगादास जी को सुनाया तो वह बोले कि यदि मैं यहां नहीं रहूंगा तो जल नहीं रहेगा। यह कहकर उन्होंने वह स्थान त्याग करने का मन बनाया साथ ही यह भी कहा कि जिस प्रकार तुम लोगों ने आकर मेरे स्थान पर उत्पात मचाया है, इसी प्रकार राज्य में भी कोई उत्पाद आएगा। यह कहकर वहां से चल दिए तो उसी समय वह कुआं सूख गया। यह देख सभी लोग भयभीत हो गए और राजा को पूरा हाल बताया। उसी समय बड़े जोर की आंधी आई जिससे राजा की फुलवारी समेत सभी पेड़-पौधे उखड़ गए। जिनमें से एक आम का वृक्ष जिसके फल राजा को बहुत पसंद थे वह भी गिर गया। यह देख राजा ने आदेश दिया कि उस फकीर को पकड़कर फुलवारी में बिठा दो और कहो कि हमारे मनपसंद आम का पेड़ फिर उठ खड़ा हो जाए, तभी उसे जाने दिया जाएगा। सिपाहियों ने गंगादास को ढूंढ कर पकड़ लिया और लाकर फुलवारी में बैठाकर राजा का आदेश सुना दिया। गंगादास जी ने रात्रि के समय ध्यान में समर्थ हो जगजीवन साहब जी से प्रार्थना की बाना की लाज रखिए मैं यहां पर असहाय और अनाथ हूँ
उसी समय स्वामी जी ने प्रत्यक्ष दर्शन देकर आशीर्वाद दिया कि दुखी मत हो जो तुम्हारी इच्छा होगी वह पूरी होगी। और अपने हाथ से दो अशरफिया गंगा दास को देकर कहा कि इससे यहां पर साधु संतों का भंडारा करना। दूसरे दिन प्रातः काल उस गिरे हुए पेड़ के पास गंगादास जी गए और बोले कि "तुमको आंधी ने गिराया, मुझको राजा ने पकड़ा, तुम उठो, तो हम छूटें।" उसी समय वह पेड़ उठकर सीधा खड़ा हो गया। उसी स्थान पर एक टूटे वृक्ष की टहनी उठाकर दातुन की और दातुन के दो टुकड़े जमीन में गाड़ दिया। जिससे पत्ते निकल आए और वह पेड़ बन गया तथा स्वामी जी से प्राप्त दो अशरफिया सिपाहियों को देकर भंडारे का सामान मंगवाया और शहर के सभी साधू संतो को भंडारे में आमंत्रित किया। स्वामीजी का नाम लेकर प्रसाद वितरण शुरू किया। जब 5000 व्यक्ति भोजन पा चुके और भोजन कम ना हुआ तो उसे गरीबों और कंगालों में बॅटवा दिया। जिससे गंगादास जी की प्रसिद्धि पूरे शहर में फैल गई। यह सुनकर राजा ने आकर गंगादास जी के चरण स्पर्श कर क्षमा याचना की और विनती कि मेरे पुत्र को अपना शिष्य बनाइए और इसी फुलवारी में निवास करिए। गंगादास जी ने इसे स्वीकार कर लिया और तभी से वहां के सभी कुओं का जल मीठा हो गया। तथा तीनों वृक्ष इतने प्रसिद्ध हुए कि लोग उनका दर्शन करने आने लगे। और मेला लगने लगा।
उसी समय स्वामी जी ने प्रत्यक्ष दर्शन देकर आशीर्वाद दिया कि दुखी मत हो जो तुम्हारी इच्छा होगी वह पूरी होगी। और अपने हाथ से दो अशरफिया गंगा दास को देकर कहा कि इससे यहां पर साधु संतों का भंडारा करना। दूसरे दिन प्रातः काल उस गिरे हुए पेड़ के पास गंगादास जी गए और बोले कि "तुमको आंधी ने गिराया, मुझको राजा ने पकड़ा, तुम उठो, तो हम छूटें।" उसी समय वह पेड़ उठकर सीधा खड़ा हो गया। उसी स्थान पर एक टूटे वृक्ष की टहनी उठाकर दातुन की और दातुन के दो टुकड़े जमीन में गाड़ दिया। जिससे पत्ते निकल आए और वह पेड़ बन गया तथा स्वामी जी से प्राप्त दो अशरफिया सिपाहियों को देकर भंडारे का सामान मंगवाया और शहर के सभी साधू संतो को भंडारे में आमंत्रित किया। स्वामीजी का नाम लेकर प्रसाद वितरण शुरू किया। जब 5000 व्यक्ति भोजन पा चुके और भोजन कम ना हुआ तो उसे गरीबों और कंगालों में बॅटवा दिया। जिससे गंगादास जी की प्रसिद्धि पूरे शहर में फैल गई। यह सुनकर राजा ने आकर गंगादास जी के चरण स्पर्श कर क्षमा याचना की और विनती कि मेरे पुत्र को अपना शिष्य बनाइए और इसी फुलवारी में निवास करिए। गंगादास जी ने इसे स्वीकार कर लिया और तभी से वहां के सभी कुओं का जल मीठा हो गया। तथा तीनों वृक्ष इतने प्रसिद्ध हुए कि लोग उनका दर्शन करने आने लगे। और मेला लगने लगा।
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